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Showing posts from June, 2018
माँ ” के लिए क्या लिखूँ ? “माँ ” ने खुद मुझे लिखा है .. मां के लिए लिखना मेरा व्यर्थ है मां की ममता का एक ही न अर्थ है मां तो मां है, उसकी ममता का कोई मोल नहीं है और तू कहां ढूंढेगा इस संसार में भगवान को मां तो खुद अपने आप में एक तीर्थ है... जो मां एक फूल है तो तू एक शूल है मां अगर चरण हैं तो तू उनकी धूल है और मां अगर पहाड़ हैं तो तू सिर्फ अंश है मां अगर अनंत है तो तू सिर्फ अंत है मैं क्या गुस्ताखी करूंगा मां पर शब्द लिखने की, मां शब्द का ना कोई आदि है ना कोई अंत है..... मां जानती है सब कुछ फिर भी अनजान बन जाती है तेरी हर आफत में तेरी ढाल बन जाती है तू चाह कर भी अंधेरे में जा नहीं पाता वो हर बार तेरे लिए ज्ञान की मसाल बन जाती है.... अपनी ही औलाद के धक्कों से जब मां घर से निकलती है उस दुख भरे पल में भी उसकी आत्मा से एक ही आवाज़ निकलती है कि मुझे तो अब आदत सी हो गयी है दुख सहने की भगवान न करे तुझपे ये दिन आएं क्यों कि हर किसी को अच्छी औलाद बड़े मुकद्दर से मिलती है.... अब भी मां रो रही है कोने में बैठकर कभी अपने अतीत और कभी अपने आज को सोचकर कि जिस औलाद के लिए उसने कुर्बान कर दी अपनी सा